मन समझे मन की बात Published on: 19 Apr, 2023

JYOTI

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1.मन समझे मन की बात
कुछ कही,कुछ अनकही बात
न चाँद से कही ,न तारो ने सुनी
वो बात
बस , मन समझे मन की बात
कुछ कही ,कुछ अनकही बात
न भंवरो ने गुनगुनाई ,न फूलो ने सुनाई
वो बात
मन समझे मन की बात
कुछ कही, कुछ अनकही बात
न बंजारो ने बोली, न पंछियो ने गाई
वो बात
मन समझे मन की बात
कुछ कही ,कुछ अनकही बात
दिल ने कही दिल से
पर होंठों पे न आई जो बात
मन समझे मन की बात
कुछ कही,कुछ अनकही बात
मन समझे मन की बात
न आँखे ही पढ़ पाई, न चेहरो ने समझाई
दूर दबी  कही गहराई , वो बात
बस, मन समझे मन की बात!
दा की दी पंक्ति से प्रेरित होकर लिखी वो बातI
ज्योति वर्मा.                 

2.

उम्र की इकाइयां दहाइयां बढ़ती रहीं
शून्यता मन की संवरती रहीं
कसक इकाइयों दहाइयों संग डूबने की
कभी बढ़ती रही, कभी घटती रही
कभी इकाई दहाई शून्य से हारती
कभी शून्य का मान बढ़ाती
तो कभी शिथिल बन शून्य को डराती
तन शिथिल हो डराने लगा
निकम्मे मन को हराने चला
पर मन तो मन है
पंख इसको बड़े गज़ब लगे
हर इकाई दहाई से परे उड़े 
पल में आसमां और पल में
धरा पे ये पले
इसको भला कौन बांध सके
हां, इसको साध के सब बड़े बने।

ज्योति वर्मा


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