आजकल अक्सर देखती हूँ ,सुनती हूँ कि बच्चे एक प्रोफेशन से दूसरे मे स्विच कर जाते है या कहे कि व्यावसाय परिवर्तन बहुत सामान्य हो गया है और शायद ये किसी तरह की ज़बरदस्ती का परिणाम है, इसीलिए संतुष्टी नही हैआदि|
पर मेरे मन की आवाज़ ये कहती है कि जो जहं| पहुचा वो अपनी ल्याकत से.मेहनत से पहुचा हो सकता है अपनी पसन्द से कुछ करने को न मिला हो लेकिन जहं|पहुचे वहं| कोई हर वक्त अंगुली पकड़ कर तो नही बैठा था|
इसलिए ज़बरदस्ती के बारे मे सोचने के बजाए अगर हम ये कहे कि शायद ज़िन्दगी के आगे के सफर के लिए ,कुछ और बेहतर करने के लिए किसी हुनर ज़रूरत थी इसलिए हम न चाहते हुए भी किसी मुकाम पर पहुचे तं|कि आगे वाले मुकाम और उसकी यात्रा को और बेहतर कर सके|
इसलिए दोष की नीति से अच्छा है स्वयं पर विश्वास करे, ईश्वर पर और अपनो पर भरोसा रखे और जीवन मे पछतावो के बजाए,नित नई आशाओ और उमंगो के साथ आगे बढ़ते रहें !
ज्योति वर्मा
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