बहुत अच्छा लगता है ,जब आपकी लिखी कलाकृतियो के ऊपर आप के गुरु सरीखे बड़े भाई एवं संपादक आपके कार्य की तारीफ करते है, ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआजब अचानक से अप्रैल 6,2023 को मुझे मेरे दा भाव प्रो. प्रेम मोहन लखोटिया जी एवं उनकी जीवन संगिनी ष्रीमती सविता लखोटिया जी का निम्न संदेश वाठस एप पर प्राप्त हुआ|
प्रिय ज्योति,
शुभाशीष।
फिर से! हाँ, एक बार फिर से तुम्हारे मन के उन्मेषों की कविताओं का संकलन 'भावों की भोली रेखाएं' शब्द शब्द कर पढ़ा- कभी भावों की रसवंती फुहार सा तो कभी आत्म-दर्शन की प्रेरणा सा।
पिछले चार दिनों में हमारे स्वाध्याय के क्षणों में तुम्हारी 'दी' सविता ने एक एक कविता मुझे तन्मय तरंग के साथ पढ़ कर सुनाई जिससे हमारी चेतना भी उद्ग्रीव हुई और तुम्हारे साथ की सहयात्रा भी कोमल और कांत हुई।
भूल गया, हाँ, मैं पूरी तरह से भूल गया कि मैं इनके संयोजन और सम्पादन में तुम्हारा साथी था। इस बार पढ़ा पूरी तरह से एक अभिभूत पाठक की तरह।
अवाक हूँ, हाँ, पूरी तरह से मुग्ध हो कर अवाक हूँ। पर लगता है कि मैं तुम्हारी इन सुन्दर, शाश्वत और दीप्तिमय कविताओं में कहीं न कहीं कोई स्वर शब्द बन कर उपस्थित हूँ, अनुभूति का अंश हूँ।
मुझे विश्वास होता है कि एक दिन ये छोटी छोटी कविताएं और यह छोटी सी पुस्तक एक समकालीन गौरव और आदर का स्थान अर्जित करेंगी।
लिखो और निरंतर लिखो। तुम्हारी भाव सम्पदा अत्यन्त उपकारी और उत्तम लगती है मुझे भी और सविता को भी।
सस्नेह,
तुम्हारा 'दा'
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